शब्द ‘नेचुरोपैथी’ को 1895 में जॉन स्कील नामक एक व्यक्ति द्वारा दर्ज किया गया और बाद में अमेरिका के बेनेडिक्ट लस्ट नामक व्यक्ति द्वारा इस नाम को सही तरीके से प्रयोग में लाया गया। बेनेडिक्ट लस्ट को अमेरिका में नेचुरोपैथी मेडिसिन का पिता भी माना जाता है। नेचुरोपैथी लेटिन भाषा के ‘Natura’ (नेचुरा) और यूनानी भाषा के शब्द ‘Pathos’ (पैथो) से निकला है। इसमें नेचुरा शब्द का मतलब प्रकृति और पैथो का मतलब पीड़ा या दर्द होता है। इस प्रकार इन दोनों शब्दों को मिलाकर नेचुरोपैथी शब्द बनाया गया, जिसका मतलब प्राकृतिक उपचार होता नेचुरोपैथी की जड़ें 19वीं सदी के यूरोप में भी देखी गई हैं। 18वीं सदी में भी कई देशों में प्राकृतिक आहार व एक्सरसाइज अपनाकर प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा दिया था।
एलोपैथ, होम्योपैथ और आयुर्वेद जैसी प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों की तरह नेचुरोपैथी के भी अपने सिद्धांत व नियम हैं, जिनके अनुसार यह काम करती है।
अन्य प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों की तरह नेचुरोपैथी में भी उन दवाओं व थेरेपियों की महत्व दिया जाता है, जो शरीर को नुकसान न दें। प्राकृतिक चिकित्सा में ऐसी थेरेपी और आहार का प्रयोग किया जाता है जो शरीर के लिए विषाक्त ना हों बल्कि वह शरीर में मौजूद विषाक्त तत्वों को शरीर से बाहर कर दें।
नेचुरोपैथी के अनुसार किसी भी रोग या शारीरिक समस्या को ठीक करने के लिए प्रकृति की मदद आवश्यक होती है। नेचुरोपैथी में थेरेपी और आहार के साथ-साथ एक विशेष प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है जो मानव स्वास्थ्य को ठीक करने में मदद करता है। नेचुरोपैथिक डॉक्टर शरीर की आंतरिक आवश्यकताओं को समझते हैं और उसके अनुरूप शरीर को सम्पूर्ण आरोग्य के लिए तैयार करते हैं।
किसी भी रोग व स्वास्थ्य समस्या का इलाज करने के लिए उसके कारण का पता लगाया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा में रोग का इलाज करने और उसके लक्षणों को दूर करने की प्रक्रियाएं अलग-अलग होती हैं। हालांकि, कई बार समस्याओं का इलाज करने के लिए लक्षणों और अंदरूनी कारणों को दूर करना जरूरी हो जाता है।
एक नेचुरोपैथिक डॉक्टर न सिर्फ मरीज के रोगों का इलाज करता है, बल्कि उसे स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान भी प्रदान करता है। स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान प्राप्त होने पर व्यक्ति को स्वस्थ रहने के तरीकों को अच्छे से समझने में मदद मिलती है। प्राकृतिक चिकित्सा में दी गई शिक्षा मरीज व चिकित्सक के बीच विश्वास बढ़ता है और ताकि स्वस्थ रहने के नियमों का पालन करने में मदद मिलती है।
- रोग नहीं रोगी का उपचार – जिस प्रकार एलोपैथिक चिकित्सा में रोग को दूर करने के लिए दवाएं दी जाती हैं, जबकि नेचुरोपैथी में उपचार प्रक्रिया थोड़ी अलग है। नेचुरोपैथिक डॉक्टर मरीज के शरीर, वातावरण और उसकी जीवनशैली के परस्पर संबंध का पता लगाता है।
- निवारण – कई प्राचीन उपचार पद्धतियों की तरह नेचुरोपैथी में भी रोगों के इलाज से पहले उनके निवारण को अधिक महत्व दिया जाता है। नेचुरोपैथी में सभी सिद्धांतों व नियमों की मदद से शरीर के संभावित असंतुलित हिस्सों की जांच की जाती है। नेचुरोपैथी के अनुसार निवारण यानि रोकथाम सबसे मुख्य नियम है, जो रोगों से बचने में हर व्यक्ति की मदद करता है।